कोरोना सोने भी नही देता- गणपत हिमांशु की कविता।

कोरोना सोने भी नही देता 

मै घर में था अकेला
खा रहा था केला।
तभी मेरा मन घबराया
क्योंकि किसी ने दरवाजा खटखटाया
लगा जैसे कोरोना वायरस आया
यह सोचकर मेरा शरीर थरथराया।
मैने दरवाजा खोला
तभी एक डरावने चेहरे ने बोला-
सबके घरों को नया बनाना मेरा काम
बताओ क्या है मेरा नाम?
उसने कही यह बात
और पकड़ लिया मेरा हाथ।
मेरा हाथ छोरोना
वरना मुझे भी हो जायेगा कोरोना।
उसने बोला मुझसे माट डरो
पहले मेरा स्वागत तो करो।
मै अपने हाथ सेनिटाइज़ कर आया हूँ
जिससे कीटाणु गये है मर
अब बातें खत्म करो
और दिखाओ अपना घर।
फ़िर वह घर को नया बना रहा था
 मैं उसके लिए पकोड़े बना रहा था
फ़िर मुझे लगा जैसे
मुझपे दे रहा है कोई पहरा
पीछे मुड़ कर देखा तो
था एक डरावना चेहरा।
उसको देखकर मै तो
बिल्कुल डर गया
फ़िर मैने उसे किया सेनिटाइज़
तो वो मर गया।
फ़िर मुझे पता चला की वो है कोरोना
तो मै वहाँ से भागा
फ़िर मुझे लगा जैसे
किसी ने मुझे मारा।
आखे खोली थी थी मेरी डॉगी क्रीम
फ़िर मै समझा की यह था मरा ड्रीम।

गणपत हिमांशु
सृजनात्मक लेखन

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